वशीकरण के अचूक उपाय
अचूक वशीकरण मंत्र !
जो व्यक्ति इन पांच मकारो में लिप्त रहता हैं वही तांत्रिक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मदिरा तो खानी ही चाहिए, और वह नित्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ढोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं? लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं!
परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथभ्रष्ट लोगों का रहा, जिनकी वजह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अर्थों में देखा जायें तो तंत्र का तात्पर्य तो जीवन को सभी दृष्टियों से पूर्णता देना हैं!
जब हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, तो फिर तंत्र की हमारे जीवन में कहाँ अनुकूलता रह जाती हैं? मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना, हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी!
पहले प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तांत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्ष्ण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विधा हैं.
आज के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिद्री बने रहे, इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय में सफलता मिले! बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना में यदि कोई न्यूनता रह जायें, तो यह तो हो सकता हैं, कि सफलता नहीं मिले परन्तु कोई विपरीत परिणाम नहीं मिलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं!
"ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।"
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में 20000 जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन 108 बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
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तंत्र द्वारा वशीकरण !
तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई।
जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, वह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक सर्वोत्कृष्ट विद्या थी और समाज का प्रत्येक वर्ग उसे अपना रहा था! जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने में केवल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आदि जो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक विकृत रूप दे दिया! उन्होंने तंत्र का तात्पर्य भोग, विलास, मद्य, मांस, पंचमकार को ही मान लिया!
“मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमेव च, मकार पंचवर्गस्यात सह तंत्रः सह तान्त्रिकां”
जो व्यक्ति इन पांच मकारो में लिप्त रहता हैं वही तांत्रिक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मदिरा तो खानी ही चाहिए, और वह नित्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ढोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं? लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं!
परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथभ्रष्ट लोगों का रहा, जिनकी वजह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अर्थों में देखा जायें तो तंत्र का तात्पर्य तो जीवन को सभी दृष्टियों से पूर्णता देना हैं!
जब हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, तो फिर तंत्र की हमारे जीवन में कहाँ अनुकूलता रह जाती हैं? मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना, हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी!
पहले प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तांत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्ष्ण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विधा हैं.
आज के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिद्री बने रहे, इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय में सफलता मिले! बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना में यदि कोई न्यूनता रह जायें, तो यह तो हो सकता हैं, कि सफलता नहीं मिले परन्तु कोई विपरीत परिणाम नहीं मिलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं!
जनसाधारण में इसका व्यापक प्रचार न होने का एक कारण यह भी था कि तंत्रों के कुछ अंश समझने में इतने कठिन हैं कि गुरु के बिना समझे नहीं जा सकते । अतः ज्ञान का अभाव ही शंकाओं का कारण बना।
तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मधयम मार्ग कहा गया है।
श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है ।
चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।
तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मधयम मार्ग कहा गया है।
श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं।
तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है ।
चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।
परस्पर आश्रित या आपस में संक्रिया करने वाली चीजों का समूह, जो मिलकर सम्पूर्ण बनती हैं, निकाय, तंत्र, प्रणाली या सिस्टम (System) कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है, रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है, यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये, किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है, तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है, शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है, और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है, वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है, जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा सकता, केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है, उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है, जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है, कि वे उसे जानते है, जैसे कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा, मगर अधिक समय तक चलेगा, और जो वल्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा, उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है, मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा, अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.
तन्त्र परम्परा से जुडे हुए आगम ग्रन्थ हैं। इनके वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं।
तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र” । जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है।
तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है और साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्रचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं।
तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र” । जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है।
तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है और साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्रचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं।
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उपाय !
१. यदि शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो भोजपत्र का टुकड़ा लेकर उस पर लाल चंदन से शत्रु का नाम लिखकर शहद की डिब्बी में डुबोकर रख दें। शत्रु वश में आ जाएगा।
२. काले कमल, भवरें के दोनों पंख, पुष्कर मूल, श्वेत काकजंघा - इन सबको पीसकर सुखाकर चूर्ण बनाकर जिस पर डाले वह वशीभूत होगा।
३. छोटी इलायची, लाल चंदन, सिंदूर, कंगनी , काकड़सिंगी आदि सारी सामग्री को इक्ट्ठा कर धूप बना दें व जिस किसी स्त्री के सामने धूप देगें वह वशीभूत होगी।
४. काकजंघा, तगर, केसर इन सबको पीसकर स्त्री के मस्तक पर तथा पैर के नीचे डालने पर वह वशीभूत होती है।
५. तगर, कूठ, हरताल व केसर इनको समान भाग में लेकर अनामिका अंगुली के रक्त में पीसकर तिलक लगाकर जिसके सम्मुख आएंगे वह वशीभूत हो जाएगा। ज्यादातर सभावशीकरण करने के लिए यह प्रयोग किया जाता है।
६. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में अनार की लकड़ी तोड़कर लाएं व धूप देकर उसे अपनी दांयी भुजा में बांध लें तो प्रत्येक व्यक्ति वशीभूत होगा।
७. शुक्ल पक्ष के रविवार को ५ लौंग शरीर में ऐसे स्थान पर रखें जहां पसीना आता हो व इसे सुखाकर चूर्ण बनाकर दूध, चाय में डालकर जिस किसी को पिला दी जाए तो वह वश में हो जाता है।
८. पीली हल्दी, घी (गाय का), गौमूत्र, सरसों व पान के रस को एक साथ पीसकर शरीर पर लगाने से स्त्रियां वश में हो जाती है।
९. बैजयंति माला धारण करने से शत्रु भी मित्रवत व्यवहार करने लगते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने यह माला पहनी हुई थी व उन्हें यह अतिप्रिय थी व उनमें सबको मोहित करने की अद्भुत क्षमता भी थी।
१०. कई बार पति किसी दूसरी स्त्री के चंगुल में आ जाता है तो अपनी गृहस्थी बचाने के लिए स्त्रियां यह प्रयोग कर सकती हैं। गुरुवार रात १२ बजे पति के थोड़े से बाल काटकर जला दें व बाद में पैर से मसल दें अवश्य ही जल्दी ही पति सुधर जाएगा।
११. कनेर पुष्प व गौघृत दोनों को मिलाकर, वशीकरण यंत्र रखें व आकर्षण मंत्र का जप करें। जिसका नाम लेकर १०८ बार जप करेंगे तो वह सात दिन के अंदर वशीभूत हो जाएगा।
देवी मंत्र द्वारा वशीकरण
वशीकरण का सामान्य और सरल अर्थ है- किसी को प्रभावित करना, आकर्षित करना या वश में करना। जीवन में ऐसे कई मोके आते हैं जब इंसान को ऐसे ही किसी उपाय की जरूरत पड़ती है। किसी रूठें हुए को मनाना हो या किसी अपने के अनियंत्रित होने पर उसे फिर से अपने नियंत्रण में लाना हो,तब ऐसे ही किसी उपाय की सहायता ली जा सकती है। वशीकरण के लिये यंत्र, तंत्र, और मंत्र तीनों ही प्रकार के प्रयोग किये जा सकते हैं। यहां हम ऐसे ही एक अचूक मंत्र का प्रयोग बता रहे हैं। यह मंत्र दुर्गा सप्तशती का अनुभव सिद्ध मंत्र है। यह मंत्र तथा कुछ निर्देश इस प्रकार हैं-
ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ही सा। बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति ।। यह एक अनुभवसिद्ध अचूक मंत्र है। इसका प्रयोग करने से पूर्व भगवती त्रिपुर सुन्दरी मां महामाया का एकाग्रता पूर्वक ध्यान करें। ध्यान के पश्चात पूर्ण श्रृद्धा-भक्ति से पंचोपचार से पूजा कर संतान भाव से मां के समक्ष अपना मनोरथ व्यक्त कर दें। वशीकरण सम्बंधी प्रयोगों में लाल रंग का विशेष महत्व होता है अत: प्रयोग के दोरान यथा सम्भव लाल रंग का ही प्रयोग करें। मंत्र का प्रयोग अधार्मिक तथा अनैतिक उद्देश्य के लिये करना सर्वथा वर्जित है।
आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
“ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्मी-देव-वाय, धर्म-कर्म-सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
“ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
मुस्लिम वशीकरण-प्रयोग
१॰ “आगिशनी माल खानदानी। इन्नी अम्मा, हव्वा यूसुफ जुलैखानी। ‘फलानी’ मुझ पै हो दीवानी। बरहक अब्दुल कादर जीलानी।”
विधिः- पूरा प्रयोग २१ दिन का है, किन्तु ११ दिन में ही इसका प्रभाव दिखाई देने लगता है। इस प्रयोग का दुरुपयोग कदापि नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्वयं को भी हानि हो सकती है। साधना-काल में मांस, मछली, लहसुन, प्याज, दूध, दही, घी आदि वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर साधना करनी चाहिए। पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। लम्बी धोती या स्वच्छ वस्त्र को ‘अहराना’ की तरह बाँध कर साधना करनी चाहिए। शेष बची हुई धोती या कपड़े को शरीर पर लपेटते हुए सिर को ढँक लेना चाहिए। एक ही कपड़े से पूरा शरीर ढँकना चाहिए, जैसे हिन्दू-स्त्रियाँ पहनती है।
उक्त मन्त्र की साधना रात्रि में, जब ‘नमाज’ आदि का समय समाप्त हो जाता है, तब करनी चाहिए। साधना करने से पहले मुसलमानी विधि से वजू करे। हो सके, तो नहा ले। जप या तो हिन्दू-विधि से करे या मुसलमानी विधि से। हिन्दू-विधि में माला का दाने अपनी तरफ घुमाए जाते हैं। मुसलमानी विधि में माला के दाने अपनी तरफ से आगे की ओर खिसकाए जाते हैं। प्रतिदिन ११०० बार जप करे। यदि ११ दिन से पहले ‘साध्य’ आ जाए, तो न तो अधिक घुल-मिल कर बात करे, न ही किसी प्रकार का क्रोध करे। कोई बहाना बनाकर उसके पास से हट जाए। यदि ११ दिन में कार्य न हो तो २१ दिन तक जप करे। मन्त्र में ‘फलानी’ की जगह ‘साध्या’ का नाम लेना चाहिए।
२॰ “काला मयींयो इल इजामा वहैया रमीम।”
विधिः-
उक्त मन्त्र ‘कुरान शरीफ’ के २३वें ‘पारे’ में है। इस मन्त्र का दुरुपयोग कदापि न करे, अन्यथा स्वयं की हानि हो सकती है।
साधना में एक मिट्टी का चौड़ा बर्तन रखे। बर्तन में हवा जाने के लिए नीचे की ओर दो-चार छोटे-छोटे छेद करे। बर्तन में आम की लकड़ी के कोयले भर दें। कुछ कोयले अलग रख ले। बर्तन के कोयले जला कर एक बार ‘बिस्मिल्लाह’ एढ़े और ग्यारह बार ‘दरुद शरीफ’ पढ़े तथा खुदा से ‘प्रयोग’ की सफलता हेतु दुआ करे। फिर बाँएँ हाथ में एक काली मिर्च तथा दाहिने हाथ में माला लेकर उक्त मन्त्र ४० बार पढ़े। काली मिर्च और कोयले को फूँक मारते हुए मिट्टी के बर्तन में जलते हुए कोयले पर डाले। यदि ‘साध्य’ का नाम ज्ञात हो, तो उसका नाम कभी-कभी ले ले। अन्यथा उसका स्मरण करे। इस प्रकार ११ दिनों तक करे। यदि बीच में ‘साध्य’ आ जाए, तो भी ११ दिन तक ‘प्रयोग’ करे। अधूरा न छोड़े।
३॰ “बिस्मिल्लाहे रहेमानिर्रहीम, आलमोती होवल्लाह।”
विधिः- शुक्रवार से जप प्रारम्भ करे, लोहबान की धूप दे। कान में ‘गुलाब के इत्र’ का फाहा लगाए। ४० दिनों तक रात्रि के समय नित्य एक माला जप करे। प्रयोग के समय सात बार किसी खाने-पीने की वस्तु पर फूँक मारकर खिलाए। इससे किसी को भी वश में किया जा सकता है।
४॰ “बिस्मिल्लाहे रहेमानिर्रहीम सलामुन, कौलुनमि-नरर्विवरहीम तनजोलुल अजिजुर्रहीम।”
विधिः- उक्त मन्त्र के अनुसार प्रयोग के समय एक बार ‘बिस्मिल्लाह’ पढ़कर अपने हाथों की दोनों हथेलियों पर फूँक मारकर अपने चेहरे पर इन हथेलियों को फेरे। जहाँ जाएँगे, लोग वशीभूत होंगे।
५॰ “बिस्मिल्लाह हवाना कुलु अल्ला, हथगाना दिल है सख। तुम हो दाना, हमारे बीच फलाने/फलानी को करो दिवाना।”
विधिः- शुक्रवार से प्रारम्भ करे। लोहबान जलता रहे। २१ बार ‘बिनौला’ लेकर, प्रत्येक बिनौला पर २१ बार उक्त मन्त्र पढ़कर फूँक मारे। फलाने/फलानी की जगह जिसे वश में करना है, उसका नाम ले। फिर उन बिनौलों को आग में डाल दे। ऐसा सात शुक्रवार तक करे। यह मन्त्र उसी अवस्था में काम करेगा, जब एक-दूसरे को जानते-पहचानते हों।
वशीकरण ऐसा कि विरोधी भी समर्थक
यूं तो वशीकरण के कई तरीके प्रचलित हैं। जिनमें से कुछ तो सार्वजनिक हैं तथा कुछ अत्यंत गोपनीय किस्म के होते हैं। यंत्र, तंत्र और मंत्र के क्षेत्र में ही वशीकरण के कई अचूक और १०० प्रतिशत प्रमाणिक साधन या उपाय उपलब्ध हैं। किन्तु हर प्रयोग में किसी न किसी विशेष विधी एवं नियम-कायदों का पालन करना पड़ता ही है। यहां तक कि कुछ प्रयोग स्वयं प्रयोगकर्ता केजोखिम भरे होते हैं। इसीलिये, आज की इस भाग-दोड़ भरी जिंदगी में इंसान ऐसे तरीके या उपाय चाहता है, जो कम से कम समय में सम्पन्न हो सके और किसी भी प्रकार के खतरे से पूरी तरह से सुरक्षित भी हों।
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने, का सरल अनुभवी एवं अचूक तरीका या उपाय दिया जा रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर उपाय इस प्रकार है--
साइंस ऑफ मेडिटेशन- जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना चाहते हैं, उसका एक चित्र जोकि लगभग पुस्तक के आकार का तथा स्पष्ट क्षवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठें, तो उस चित्र की क्षवि आपकी आंखों के सामने ही रहे। ५ मिनिट तक प्राणायाम करने के पश्चात उस चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह प्रयोग सूर्योदय से पूर्व होना होता है।
हर बार सफल- यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग के स्पष्ट प्रभाव दीखने लगते हैं। लिये भी
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने, का सरल अनुभवी एवं अचूक तरीका या उपाय दिया जा रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर उपाय इस प्रकार है--
साइंस ऑफ मेडिटेशन- जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना चाहते हैं, उसका एक चित्र जोकि लगभग पुस्तक के आकार का तथा स्पष्ट क्षवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठें, तो उस चित्र की क्षवि आपकी आंखों के सामने ही रहे। ५ मिनिट तक प्राणायाम करने के पश्चात उस चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह प्रयोग सूर्योदय से पूर्व होना होता है।
हर बार सफल- यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग के स्पष्ट प्रभाव दीखने लगते हैं। लिये भी
सम्मोहन शक्तिवर्द्धक सरल उपाय :
१. मोर की कलगी रेश्मी वस्त्र में बांधकर जेब में रखने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
२. श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
३. स्त्रियां अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर उसे देखने का प्रयास करें। यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो समझ लें कि आपमें सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
४. गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
५. गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
६. कई बार आपको यदि ऐसा लगता है कि परेशानियां व समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धन का आगमन रुक गया है या आप पर किसी द्वारा तांत्रिक अभिकर्म'' किया गया है तो आप यह टोटके अवश्य प्रयोग करें, आपको इनका प्रभाव जल्दी ही प्राप्त होगा।
तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय
१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।
७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें। तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।
८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।
२. श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
३. स्त्रियां अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर उसे देखने का प्रयास करें। यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो समझ लें कि आपमें सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
४. गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
५. गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
६. कई बार आपको यदि ऐसा लगता है कि परेशानियां व समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धन का आगमन रुक गया है या आप पर किसी द्वारा तांत्रिक अभिकर्म'' किया गया है तो आप यह टोटके अवश्य प्रयोग करें, आपको इनका प्रभाव जल्दी ही प्राप्त होगा।
तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय
१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।
७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें। तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।
८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।
सिद्ध वशीकरण मन्त्र
१॰ “बारा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौं कालिका। चण्डी म राखौं मोहिनी, भुजा म राखौं जोहनी। आगू म राखौं सिलेमान, पाछे म राखौं जमादार। जाँघे म राखौं लोहा के झार, पिण्डरी म राखौं सोखन वीर। उल्टन काया, पुल्टन वीर, हाँक देत हनुमन्ता छुटे। राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। कीर करे बीट बिरा करे, मोहिनी-जोहिनी सातों बहिनी। मोह देबे जोह देबे, चलत म परिहारिन मोहों। मोहों बन के हाथी, बत्तीस मन्दिर के दरबार मोहों। हाँक परे भिरहा मोहिनी के जाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहेब।”
विधि- उक्त मन्त्र स्वयं सिद्ध है तथा एक सज्जन के द्वारा अनुभूत बतलाया गया है। फिर भी शुभ समय में १०८ बार जपने से विशेष फलदायी होता है। नारियल, नींबू, अगर-बत्ती, सिन्दूर और गुड़ का भोग लगाकर १०८ बार मन्त्र जपे।
मन्त्र का प्रयोग कोर्ट-कचहरी, मुकदमा-विवाद, आपसी कलह, शत्रु-वशीकरण, नौकरी-इण्टरव्यू, उच्च अधीकारियों से सम्पर्क करते समय करे। उक्त मन्त्र को पढ़ते हुए इस प्रकार जाँए कि मन्त्र की समाप्ति ठीक इच्छित व्यक्ति के सामने हो।
विधि- उक्त मन्त्र स्वयं सिद्ध है तथा एक सज्जन के द्वारा अनुभूत बतलाया गया है। फिर भी शुभ समय में १०८ बार जपने से विशेष फलदायी होता है। नारियल, नींबू, अगर-बत्ती, सिन्दूर और गुड़ का भोग लगाकर १०८ बार मन्त्र जपे।
मन्त्र का प्रयोग कोर्ट-कचहरी, मुकदमा-विवाद, आपसी कलह, शत्रु-वशीकरण, नौकरी-इण्टरव्यू, उच्च अधीकारियों से सम्पर्क करते समय करे। उक्त मन्त्र को पढ़ते हुए इस प्रकार जाँए कि मन्त्र की समाप्ति ठीक इच्छित व्यक्ति के सामने हो।
२॰ शूकर-दन्त वशीकरण मन्त्र
“ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।”
विधि- ‘शूकर-दन्त’ को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज बनाकर गले में पहन लें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोना, भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होगा। लोगों का वशीकरण होगा। मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में वृद्धि होगी।
“ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।”
विधि- ‘शूकर-दन्त’ को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज बनाकर गले में पहन लें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोना, भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होगा। लोगों का वशीकरण होगा। मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में वृद्धि होगी।
३॰ कामिया सिन्दूर-मोहन मन्त्र-
“हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे।
“हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे।
आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
१॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्मी-देव-वाय, धर्म-कर्म-सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
१॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्मी-देव-वाय, धर्म-कर्म-सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
बजरङग वशीकरण मन्त्र
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।
आकर्षण हेतु हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।
वशीकरण हेतु कामदेव मन्त्र
“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।”
विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा।
“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।”
विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा।
प्रेमी-प्रेमिका वशीकरण मंत्र (Premi premika vashikaran mantra)
'कामाख्या देश कामाख्या देवी,
जहॉं बसे इस्माइल जोगी,
इस्माइल जोगी ने लगाई फुलवारी,
फूल तोडे लोना चमारी,
जो इस फूल को सूँघे बास,
तिस का मन रहे हमारे पास,
महल छोडे, घर छोडे, आँगन छोडे,
लोक कुटुम्ब की लाज छोडे,
दुआई लोना चमारी की,
धनवन्तरि की दुहाई फिरै।'
''किसी भी शनिवार से शुरू करके 31 दिनों तक नित्य 1144 बार मंत्र का जाप करें तथा लोबान, दीप और शराब रखें, फिर किसी फूल को 50 बार अभिमंत्रित करके स्त्री को दे दें। वह उस फूल को सूँघते ही वश में हो जाएगी।''
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ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
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सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं।
यदि सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाएगी।
राई और प्रियंगु को ÷ह्रीं' मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके किसी स्त्री के ऊपर डाल दें तो वह वश में हो जाएगी।
शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाएं जिसका नाम लिखा है। फिर उस पुतली को छाती से लगाकर रखें। इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी।
बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ पीसकर जिसे सुंघाया जाए वह वशीभूत हो जाएगा।
नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेप माथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें। लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
शुभ दिन एवं शुभ लग्न में सूर्योदय के पश्चात उत्तर की ओर मुंह करके मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप शुरू करें। ३१ दिनों तक ३ माला का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध करके वशीकरण तंत्र की किसी भी वस्तु को टोटके के समय इसी मंत्र से २१ बार अभिमंत्रित करके इच्छित व्यक्ति पर प्रयोग करें। अमुक के स्थान पर इच्छित व्यक्ति का नाम बोलें। वह व्यक्ति आपके वश में हो जाएगा। मंत्र इस प्रकार है -
ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुक महीपति मे वश्यं कुरू कुरू स्वाहा।
रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं। फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें। इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है। ऐसा काजल किसी को नहीं देना चाहिए।
अनार के पंचांग में सफेद घुघची मिला-पीसकर तिलक लगाने से समस्त संसार वश में हो जाता है।
कड़वी तूंबी (लौकी) के तेल और कपड़े की बत्ती से काजल तैयार करें। इसे आंखों में लगाकर देखने से वशीकरण हो जाता है।
बिल्व पत्रों को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। इसका तिलक करके साधक जिसके पास जाता है, वह वशीभूत हो जाता है।
कपूर तथा मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक लगाने से साधक को जो भी देखता है, वह वशीभूत हो जाता है।
केसर, सिंदूर और गोरोचन तीनों को आंवले के साथ पीसकर तिलक लगाने से देखने वाले वशीभूत हो जाते हैं।
श्मशान में जहां अन्य पेड़ पौधे न हों, वहां लाल गुलाब का पौधा लगा दें। इसका फूल पूर्णमासी की रात को ले आएं। जिसे यह फूल देंगे, वह वशीभूत हो जाएगा। शत्रु के सामने यह फूल लगाकर जाने पर वह अहित नहीं करेगा।
अमावस्या की रात्रि को मिट्टी की एक कच्ची हंडिया मंगाकर उसके भीतर सूजी का हलवा रख दें। इसके अलावा उसमें साबुत हल्दी का एक टुकड़ा, ७ लौंग तथा ७ काली मिर्च रखकर हंडिया पर लाल कपड़ा बांध दें। फिर घर से कहीं दूर सुनसान स्थान पर वह हंडिया धरती में गाड़ दें और वापस आकर अपने हाथ-पैर धो लें। ऐसा करने से प्रबल वशीकरण होता है।
प्रातःकाल काली हल्दी का तिलक लगाएं। तिलक के मध्य में अपनी कनिष्ठिका उंगली का रक्त लगाने से प्रबल वशीकरण होता है।
कौए और उल्लू की विष्ठा को एक साथ मिलाकर गुलाब जल में घोटें तथा उसका तिलक माथे पर लगाएं। अब जिस स्त्री के सम्मुख जाएगा, वह सम्मोहित होकर जान तक न्योछावर करने को उतावली हो जाएगी।
सम्मोहन
सम्मोहन विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके अपनी ओर आकर्षित करती है।विधिवत् रूप से शिक्षा लेना कोई आवश्यक नहीं है, क्योंकि यह तो मन और इच्छा शक्ति का ही खेल है। आप स्वयं के प्रयास, निरंतर अभ्यास और असीम धैर्य से सम्मोहन के प्रयोग सीखना आरंभ कर दें तो आप भी अपने अंदर यह अद्भुत शक्ति जाग्रत कर सकते हैं। यह विद्या मन की एकाग्रता और ध्यान, धारणा समाधि का ही मिला-जुला रूप है।
आप किसी भी आसन में बैठकर शांतचित्त से ध्यानमग्न होकर मन की गहराइयों में झांकने का प्रयास करें। हालांकि प्रारंभ में आपको कुछ बोरियत अथवा कठिनाई महसूस होगी परंतु यहीं तो आपके धैर्य की परीक्षा आरंभ हो जाती है। आप विचलित न हों और धैर्यपूर्वक प्रयास जारी रखें। मन को कहीं भी न भटकने दें। मन के समस्त विचारों को एक बिंदु पर ही केंद्रित कर लें और सिर्फ दृष्टा बन जायें अर्थात् जो कुछ भी मन के भीतर चल रहा है उसे चलने दें, छोड़ें नहीं। सिर्फ देखते जायें। आपको तो बस मन की गहराइयों में उतरकर झांकने का प्रयास करना है। शनैः शनैः आप महसूस करेंगे कि आपको आंशिक सफलता प्राप्त हो रही है। आपको कुछ अनोखा सा सहसूस होने लगेगा। बस यहीं से आरंभ होती है आपकी वास्तविक साधना और अब आप तैयार हो जाएं एक अद्भुत जगत में पदार्पण करने के लिए। जहां विचित्रताएं और आलौकिक अनुभूतियां बांहें पसारे आपका स्वागत करने को आतुर हैं। यहां आकर आपको सब कुछ (भूत-वर्तमान व भविष्य) एक चलचित्र की भांति स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगता है।
ध्यान के द्वारा मन की गहराइयों में आकर उसका रहस्य जाना जा सकता है। मन को वश में करने की प्रमुख विधि ध्यान ही है। सम्मोहन अथवा वशीकरण विद्या में दूसरों को वश में करने से पूर्व स्वयं अपने मन को अपने ही वश में करना परम आवश्यक है। जब आपका मन आपके नियंत्रण में हो जाये तो दूसरों को वशीभूत करना तो फिर बायें हाथ का खेल है।
सम्मोहन में प्रवीणता हासिल करने के सिर्फ तीन ही नियम हैं। पहला अभ्यास, दूसरा और ज्यादा अभ्यास तथा तीसरा और अंतिम नियम है निरंतर अभ्यास।
इस विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके आकर्षित करती है।
भारतीय मनीषियों ने जहां एक ओर सम्मोहन सीखने के लिए यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे आवश्यक तत्व निर्धारित किये हैं। वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य विद्वानों और सम्मोहनवेत्ताओं ने हिप्नोटिज्म में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए सिर्फ प्राणायाम और त्राटक को अधिक महत्व दिया है। पाश्चात्यवेत्ताओं का मानना है कि श्वास-प्रश्वास पर नियंत्रण एवं त्राटक द्वारा नेत्रों में चुंबकीय शक्ति को जाग्रत करके ही मनुष्य सफल हिप्नोटिस्ट बन सकता है।
त्राटक के द्वारा ही मन को एकाग्र करके मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। यहां हम अपने भारतीय ऋषि-मुनियों और सम्मोहनविज्ञों के दीर्घकालीन अनुभव का लाभ उठाते हुए उनके द्वारा प्रदत्त कुछ नियमों का भी यदि पालन कर सकें तो हम शीध्रता से सम्मोहन में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। आहार-विहार की शुद्धि, विचारों में सात्विकता, प्राणायाम-त्राटक और ध्यान का नियमित अभ्यास तथा असीम धैर्य और विश्वास के संयुग्मन से सम्मोहन विद्या को पूर्णता के साथ आत्मसात् किया जा सकता है। वैसे पाश्चात्यवेत्ताओं के मतानुसार सिर्फ प्राणायाम व त्राटक साधना करके भी सम्मोहन सीखने में कोई हानि नहीं है।
हिप्नोटिज्म का उपयोग मुख्यतः मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में किया जाता है। शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग पूर्णतः सफल रहा है। पश्चिमी देशों में तो सम्मोहन को एक विज्ञान के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त हो चुकी है और वहां के समस्त अस्पतालों में अन्य चिकित्सकों, रोग-विशेषज्ञों की भांति हिप्नोटिस्ट्स (सम्मोहनवेत्ताओं) के लिए भी अलग से पद निर्धारित होते हैं। अब तो वहां की पुलिस भी अपराधों की रोकथाम करने एवं अपराधियों से अपराध कबूल करवाने में हिप्नोटिज्म का भरपूर उपयोग करने लगी है, परंतु विडम्बना यही है कि जिस देश में इस विद्या की उत्पत्ति हुई यानि भारतवर्ष में आज सैकड़ों वर्षों पश्चात् भी सम्मोहन को मान्यता नहीं मिल पायी है।
सम्मोहन का अभ्यास साधकों को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है। जहां एक ओर उनकी आत्मिक शक्ति प्रबल होती है वहीं दूसरी ओर उनके आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होकर इच्छा-शक्ति सृदृढ़ हो जाती है। इन सबका साधक के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है।
सम्मोहन विद्या का उपयोग सदैव दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए ही करना चाहिए। प्रतिकूल अथवा विरोधी भावना से किया गया सम्मोहन का प्रयोग प्रायः असफल ही रहता है। साधक को कभी भी अपनी इस शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। उसे इस शक्ति को जनकल्याण में उपयोग करना चाहिए। सम्मोहन का एक काला भाग यह भी है कि इस विद्या का उपयोग करके अपराध व अन्य बुरे कार्य भी करवाये जा सकते हैं लेकिन इस विद्या का दुरुपयोग करने के परिणामस्वरूप साधक की शक्ति का अत्यधिक अपव्यय होने लगता है और संचित शक्ति शीघ्र ही नष्ट हो जाती है अथवा साधक को मानसिक विकार उत्पन्न कर देती है।
बिंदु त्राटक :
एक वर्गाकार सफेद कार्ड बोर्ड/ड्राइंग पेपर लेकर उसके बीचोंबीच में एक छोटा-सा काली मिर्च के आकार का काले रंग का गोल बिंदु बना लें। बिना शीशे वाले लकड़ी के फ्रेम के ऊपर कार्ड बोर्ड को चिपका दें और कमरे की दीवार पर इसे पर्याप्त उंचाई पर टांग दें।
अब उस बोर्ड से लगभग तीन फुट की दूरी पर जमीन पर आसन बिछाकर सुखासन अथवा पद्मासन में बैठ जायें और काले बिंदु पर दृष्टि को एकाग्र कर लें। कुछ देर के अभ्यास के पश्चात् जब काला बिंदु कभी ओझल हो जाये और कभी पुनः प्रकट होने लगे तो समझना चाहिए कि आपको सफलता मिलना आरंभ हो गई है और अभ्यास निरंतर जारी रखें।
जब आंखों से पानी आने लगे तो उठ जायें और अपनी आंखें ठंडे पानी अथवा गुलाब जल से धो लें। तत्पश्चात् अगले दिन पुनः अभ्यास करें।
कुछ दिनों के अभ्यास के पश्चात जब काला बिंदु नजरों से पूर्णतः ओझल हो जाये और सिर्फ सफेद ड्रॉइंगशीट ही दिखाई देने लगे तो समझना चाहिए कि आपको पूर्ण सफलता प्राप्त हो चुकी है। इस प्रकार से यह अभ्यास कम से कम पंद्रह दिनों तक करना चाहिए।
बिंदु त्राटक का अभ्यास करने से मन एकाग्र होता है और साधक की आंखों में चुंबकीय शक्ति उत्पन्न होने लगती है।
दीपक त्राटक :
रात्रि के समय शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाकर अपनी आंखों की सीध में ढाई-तीन फीट की दूरी पर रख लेना चाहिए। बैठने की स्थिति जमीन पर आसन बिछाकर अथवा सोफे या कुर्सी पर बैठकर भी बनाई जा सकती है।
दीपक को जलाकर उसकी लौ पर
अपना ध्यान केन्द्रित करें। कुछ देर के अभ्यास के पश्चात् फूंक मारकर लौ को बुझा दें और अंधेरे में देखने का अभ्यास करें। कुछ दिनों के निरंतर अभ्यास के पश्चात् आपकी आंखों को बेधक दृष्टि प्राप्त हो जायेगी और आप अंधेरे में भी देखने में पूर्णतः सक्षम हो जायेंगे। इस प्रकार से निरंतर कम से कम बीस दिनों तक नियमापूर्वक अभ्यास करें। दीपक त्राटक का अभ्यास करने से आपको अलौकिक दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। इससे आपकी आंखों में अग्नि के समान चमक पैदा हो जायेगी। कोई भी व्यक्ति आपकी आंखों में आंखें डालकर बात करने का प्रयास करेगा तो वह तुरंत परास्त होकर मानसिक रूप से आपका आधिपत्य स्वीकार कर लेगा।
प्रतिबिंब त्राटक :
प्रतिबिंब त्राटक एक अति सरल और महत्वपूर्ण साधना है। इसका अभ्यास दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर किया जाता है। सर्वप्रथम एक फुट चौड़ा और एक फुट ऊंचा चौकोर एक बढ़िया कांच (दर्पण) लेकर फ्रेम में कसवाकर कमरे में किसी एक दीवार पर इतनी उंचाई पर लगा दें कि जमीन पर बैठने के पश्चात् दर्पण आपकी आंखों की सीध में रहे।
अब जमीन पर आसन बिछाकर दर्पण से तीन-चार फीट की दूरी पर बैठ जायें और प्राणायाम का अभ्यास करें। (यहां ध्यान देने योग्य आवश्यक तथ्य यह है कि प्रतिबिम्ब त्राटक में स्नान और प्राणायाम का सर्वाधिक महत्त्व होता है। अतएव इस अभ्यास से पूर्व स्नान और प्राणायाम अत्यावश्यक है।) तत्पश्चात् दर्पण में दिखाई दे रहे अपने प्रतिबिंब की दोनों भृकूटियों के मध्य अपनी दृष्टि को एकाग्र करके धीमी गति से सांस लेना आरंभ कर दें। कम से कम बीस मिनट तक प्रतिदिन इसी तरह से अभ्यास करें।
कुछ दिनों के अभ्यास के पश्चात् आपका प्रतिबिंब कुछ-कुछ धुंधला-सा दिखाई देने लगेगा और दर्पण में आपको अनायास ही कुछ दृश्य या चेहरे दिखाई देंगे जिन्हें पूर्व में आपने कभी नहीं देखा होगा। इस प्रकार के नवीन दृश्य देखने का तात्पर्य है कि आप सही रास्ते पर चल रहे हैं। आपके अंतर्मन में दबी हुई तीव्र आकांक्षाएं ही आपको चित्रस्वरूप में दर्पण में दिखाई देती हैं। इसी प्रकार कुछेक दिन तक और अभ्यास करते रहने के परिणामस्वरूप आपको ये दृश्य भी दिखाई देने बंद हो जायेंगे और उसके स्थान पर आपको एक चमकदार प्रकाश दिखाई देगा। यह अवस्था ÷तुरीयावस्था' कहलाती है जिसके अंतर्गत साधक का जागृत मन विलुप्त होकर सर्वत्र स्वयं ही व्यापक हो जायेगा। यदि प्रतिबिंब त्राटक का नियमित अभ्यास किया जाये तो साधक मात्र चालीस दिन के भीतर ही ÷तुरीयावस्था' को प्राप्त कर लेता है। जिसे साधना की सफलता माना जाता है।
इस साधना में प्रयोग किए जाने वाले दर्पण को दैनिक उपयोग में नहीं लेना चाहिए अपितु साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात इस दर्पण को किसी महीन मलमल के वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए। यह ध्यान में अवश्य रखने योग्य तथ्य है कि इस दर्पण पर किसी की नजर न पड़े। साधक भी सिर्फ साधना के समय ही इस दर्पण को इस्तेमाल करे।
प्रतिबिंब त्राटक की साधना के परिणामस्वरूप साधक की आंखें ओजस्वी और तेजमय हो जाती हैं। उसकी आंखों में एक विशेष प्रकार की ऐसी चमक उत्पन्न हो जाती हो कि जो भी शख्स एक बार उन आंखों में झांक ले तो वह तुरंत उसके वश में हो जायेगा। साधक के लिए फिर कोई भी कार्य असंभव नहीं रह जाता है। इस साधना के पश्चात् साधक मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक को भी सुविधापूर्वक सम्मोहित कर सकता है। यहां तक कि जड़ अथवा निर्जीव पदार्थों को भी सम्मोहित कर पाने में संक्षम हो जाता है।
त्राटक के अभ्यास के अतिरिक्त श्रीयंत्र की विधिवत् उपासना कुंडलिनी जागरण तथा गायत्री मंत्र की साधना से भी सम्मोहन शक्ति प्राप्त की जा सकती है।
सम्मोहन व वशीकरण - लाभ कैसे लें-
आमतौर पर सम्मोहन का अर्थ वशीकरण से लगाया जाता है। परंतु यह सम्मोहन से बहुत नीचे की बात है। इसी कारण सम्मोहन कला का सम्मान जितना विदेशों में होता है, उतना ही हमारे देश में इसे वशीकरण मानने से अंधविश्वास से जोड कर देखा जाता है। सच भी है क्योंकि कुछ तांत्रिक वशीकरण विद्या का दुरुपयोग करने से नहीं हिचकते।
वशीकरण बनाम सम्मोहन -
वशीकरण का अर्थ है किसी को वश में करवशीकरण का अर्थ है किसी को वश में करना। इसके लिये सबसे जरूरी चीज है - ध्यान। जिस विषय वस्तु को अपने वश में करने की इच्छा हो तो उसके लिये अपना मन केंद्रित करना ही ध्यान है। ध्यान से हमारे शरीर में अदभुत ऊर्जा का संचार होता है। प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनि ध्यान लगा कर तेजस्वी हो गये, उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज व मुस्कान रहती थी। इसी प्रकार हम जितना अधिक ध्यान या मेडिटेशन करेंगें उतना ही अधिक हमारा व्यक्तित्व निखर कर आयेगा। हम आत्मविश्वास से लबरेज हो जायेंगें और इस प्रकार सामने वाले व्यक्ति को अपने वश में करना आसान हो जायेगा। यह है वशीकरण।
सम्मोहन में मन का अहम कार्य होता है। मन के कई स्तर होते हैं। इनमें से एक है - आत्म चेतन मन। यह मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है बल्कि हकीकत से अवगत कराता है। इस मन की साधना ही सम्मोहन है। यह मन किसी भी अतीत या भविष्य को जानने की क्षमता रखता है। सम्मोहन से विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना आदि किया जा सकता है।से विज्ञान व किंवदन्तियों के बीच की सीमा रेखा भी कह सकते हैं। पश्चिम देशों में इसे विज्ञान के रूप में विकसित किया गया है, परंतु हमारे देश में इसे योग साधना व त्राटक का अंग माना गया है। इसे विज्ञान के रूप में लाने का श्रेय जाता है डा. मेस्मर को। वे सम्मोहन से रोगी का उपचार किया करते थे। हिप्नोटिज्म यानि सम्मोहन शब्द का आविष्कार डा० जेम्स ब्रेड ने किया था। सम्मोहन व्यक्ति के मन की वह अवस्था है जिसमें उसका चेतन मन धीरे धीरे तंद्रा की अवस्था में चला जाता है और अर्ध चेतन मन सम्मोहन की प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित कर लिया जाता है।
सम्मोहन के बहुत से उदाहरणों में यह स्पष्ट रुप से देखा गया है कि सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति को उसके बचपन की किसी भी अवस्था तक ले जाया जा सकता है। कुछ सम्मोहन शास्त्री तो सम्मोहित होने वाले व्यक्ति के पिछले जन्म तक के विषय मालूम कर लेते हैं। क्योंकि सम्मोहन में सम्मोहन करने वाले व सम्मोहित होने वाले के बीच एक तरह का संबंध जुड़ जाता है जो उन दोनों के बीच के सारे पर्दे गिरा कर सच्चाई को सामने लाता है। सम्मोहन
एक ऐसी कला है जिसमें सम्मोहित व्यक्ति को केवल सम्मोहन करने वाले की ही आवाज सुनाई देती है और वह उस आवाज के निर्देशों का पालन करता है।
सम्मोहन के विभिन्न तरीके -
सम्मोहन विद्या में किसी व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिये अपनाये गये विभिन्न तरीके इस प्रकार से हैं -
ध्यान प्राणायाम नेत्र त्राटक
उक्त तरीकों द्वारा सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है। परन्तु ये कार्य किसी योग्य गुरू के सानिध्य में ही करने चाहिये।
कुछ अन्य तरीके भी आजमाये जाते हैं जो इस प्रकार से हैं -
कुछ लोग अंगूठे को आंखों की सीध में रखकर सम्मोहन क्रिया करते हैं।
कुछ लोग सम्मोहन चक्र व घड़ी के पेंडुलम की मदद से भी सम्मोहन क्रिया करते हैं।
कुछ लोग लाल बल्ब व कुछ लोग मोमबती को एकटक देखते हुये भी सम्मोहन कर सकते हैं।
सम्मोहन से प्रभावित होने वाले लोग -
आम तौर पर लोगों का विचार होता है कि कमजोर इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति को ही सम्मोहित किया जा सकता है। जबकि दृढ इच्छाशक्ति वाले को भी सम्मोहित करना मुश्किल नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मोहित करने का तरीका समान नहीं होता। यह व्यक्ति के स्वभाव पर भी निर्भर करता है कि उसे सम्मोहित किया जा सकता है या नहीं। सम्मोहन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है -
1
१५ प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन पर सम्मोहन का असर नहीं होता।
२
४० प्रतिशत लोगों का सम्मोहन के समय मासपेशियों का तनाव कम हो जाता है और पलके झपकने लगती हैं।
३
१५ प्रतिशत लोग सम्मोहन के समय तंद्रा की अवस्था में चले जाते हैं और छूने पर कुछ भी अनुभव नहीं करते।
४
२० प्रतिशत लोग सम्मोहित करते समय समाधिस्त हो जाते हैं और कहे गये सुझावों का पालन करते हैं।
सम्मोहन में नींद -
सम्मोहन प्रक्रिया के दौरान सम्मोहित होने वाले व्यक्ति को नींद आ जाती है परन्तु ये नींद साधारण नींद नहीं होती। साधारण नींद व सम्मोहन की नींद में अंतर है। साधारण नींद में हमारा चेतन मन अपने आप सो जाता है व अर्ध चेतन मन अपने आप जाग्रत हो जाता है तथा किसी बाहरी शक्ति का उपयोग नहीं होता है। जबकि सम्मोहन में सम्मोहन कर्ता दूसरे व्यक्ति के चेतन मन को सुला कर उसके अचेतन मन को आगे लाता है और अपने सुझावों के अनुसार उसे कार्य करने के लिये तैयार करता है।सम्मोहन द्वारा रोग उपचार -
मानव को होने वाले रोग दो प्रकार के होते हैं -
1 जिनके कारण और कार्यक्षेत्र पूर्णतः शारीरिक होते हैं इन्हें शारीरिक रोग कहा जाता है। २ जिनके कारण मानसिक होते हैं और लक्षण शारीरिक होते हैं। इन्हें क्रियागत रोग कहते हैं। प्रायः सभी क्रियागत रोगों में सम्मानव को होने वाले रोग दो प्रकार के होते हैं - 1 जिनके कारण और कार्यक्षेत्र पूर्णतः शारीरिक होते हैं इन्हें शारीरिक रोग कहा जाता है। २ जिनके कारण मानसिक होते हैं और लक्षण शारीरिक होते हैं। इन्हें क्रियागत रोग कहते हैं। प्रायः सभी क्रियागत रोगों में सम्मोहन लाभदायक है। सम्मोहन की तंद्रावस्था में दिये गये सुझाव इतने प्रभावकारी होते हैं कि इनसे रोगी के बहुत से मानसिक रोग दूर किये जा सकते हैं। जैसे कि किसी को तंद्रावस्था में यदि ये सुझाव दिया जाये कि शराब बुरी लत है और ये उसके सिरदर्द का मुख्य कारण है तो जागने पर जब वो शराब पीयेगा तो उसे लगेगा कि उसका सिर दर्द कर रहा है। इस तरह से उसे शराब से अरूचि पैदा हो जायेगी और वह शराब आदि बुरी लतों से छुटकारा पा लेगा। हमारे मन व मस्तिष्क में बहुत सी ग्रंथियां पैदा हो जाती हैं जो बाद में किसी रोग में तब्दील हो कर व्यक्ति को परेशान कर देती हैं। सम्मोहन से उनका कारण ढूंढ कर उनका निवारण किया जा सकता है। अनेक ऐसे रोग हैं जिनमें सम्मोहन चिकित्सा द्वारा उपचार किया गया है और रोगी को लाभ मिला है - सिरदर्द, कमर दर्द, पांव या हाथ दर्द डर, अनिंद्रा, मानसिक तनाव, विषाद लकवा, मिग्री कमजोर याददाश्त हकलाना, तुतलाना हृदय रोग नंपुसकता कब्ज मोटापा कमजोर आंखें बुरी आदतें जैसे शराब, सिगरेट निम्न कार्यों में भी सम्मोहन विद्या द्वार कार्य को पीडा रहित कर लाभ लिया गया है - विभिन्न तरह के आपरेशन दंत चिकित्सा प्रसूति यदि रोगी धनात्मक विचारों के साथ अपने रोग का निदान ढूंढे तो शीध्रता से रोग से छुटकारा पा सकता है। सम्मोहन चिकित्सा इस विषय में कारगार सिद्ध होती है। सम्मोहन द्वारा रोगी के रोग के अतिरिक्त उसके स्वभाव का भी इलाज किया जाता है। अनेक विर्द्याथियों की स्मरण शक्तियों में सुधार सम्मोहन चिकित्सा द्वारा संभव हुआ है। लोगों की कार्य क्षमता में वृद्वि भी सम्मोहन द्वारा की जा सकती है। भारत देश में तो कई शारीरिक रोगों का कारण मन ही होता है जिनसे बेहाशी, पागलपन, माइग्रेन के अल्सर, डायरिया का रोग लग जाता है। माइग्रेन का इलाज के लिये सम्मोहन की अवस्था में रोगी की जब अचेतन मन की परतें खुलती हैं तो रोग का उपचार मिल जाता है। हृदय रोग के कारण भी मन में भय, शंका, निराशा, ईर्ष्या, क्रोध, आवेश आदि विषैले विचार हैं। किसी रोग का भय भी शारीरिक व मानसिक रोग दे सकता है। सम्मोहन इस दशा में अति उपयोगी सिद्ध हुआ है। मनोरोग विशेषज्ञ डा० चारकाट के अनुसार तो ऐसा कोई भी मानसिक रोग नहीं है जो सम्मोहन द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता। इसका कारण है कि सम्मोहन शक्ति रोगी के मन-मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है जिसके कारण रोग का निवारण जड से होता है। सम्मोहन द्वारा स्वयं के रोगों का भी उपचार किया जा सकता है। शरीर के किसी भी अंग में रोग या दर्द हो तो योग के माध्यम से वहां अपना पूर्ण ध्यान लगा कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करके स्वयं की चिकित्सा की जा सकती है। लगातार उस अंग के स्वस्थ होने की कल्पना से उस रोग के उपचार में सफलता मिल जाती है।सम्मोहन के अन्य लाभ -्त मंत्र का तीनों काल एक एक माला एक मास तक जपने से यह मंत्र सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगें वहीं वश में होगा।
२. बजरंग मंत्र
ऊ पीर बजरंगी राम लक्ष्मण के संगी। जहां जहां जाये फतह के डंके बजाये॥ अमुक' को मोह के मेरे पास न लाये । तो अंजनी का पूत न कहाय॥ दुहाई राम जानकी की॥ इस मंत्र को ११ दिन तक ११ माला जाप कर सिद्ध कर लें। रामनवमी या हनुमान जयंती का दिन इस कार्य के लिये अति शुभ है। प्रयोग के समय दूध या दूध से बने पदार्थ पर ११ बार मंत्र पढकर खिला या पिला देने वशीकरण होगा।३ सिंदूर मोहन मंत्र
हथेली में हनुमंत बसे, भेरू बसे कमार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर। सबकी नज+र बांध दे, तेल सिंदूर चढ़ाऊ तुझे। तेल सिंदूर कहां से आया, कैलास पर्वत से आया। कौन लाया, अंजनी का हनुमंत, गौरी का गणेश लाया। काला गोरा तोतला तीनो बसे कपार। बिन्दा तेल सिंदूर का, दुश्मन गया पाताल। दुहाई कामिया सिंदूर की, हमे देख शीतल हो जाये। सत्य नाम, आदेश गुरु की, संत गुरु संत कबीर।
कामीया सिंदूर' पाया जाता है। इसे लगातार सात रविवार तक उक्त मंत्र का १०८ बार जाप कर मंत्र को सिद्व कर लें। प्रयोग के समय कामीया सिंदूर पर ७ बार उक्त मंत्र पढकर अपने माथे पर टीका लगायें। टीका लगाकर जहां जायेंगें, सभी वशीभूत होते जायेंगें।
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जय माता दी
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Nice..
ReplyDeleteVASHIKARAN
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श्रीमान मेरा राशि नाम वचन है मै 2002 से संघर्ष कर रहा हुँ किंतु मुझे कही सफलता नही मिल पा रही है पुत्र बीमार रहता है चिकित्सा क लाभ नही मिलता कारण बताये
ReplyDeleteI Am using kamakhya sindoor his a most power full sindoor
ReplyDeleteSir mai bohot haklaata HUN iske lie koi solution btaaie bohot pareshan hu
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