Tuesday, August 16, 2011


 क्या कहती हैं हाथ की रेखाएं?
ज्योतिषी मानते हैं कि हस्तरेखा-विज्ञान से किसी भी व्यक्ति के भूत, भविष्य, वर्तमान और उसकी प्रकृति के बारे में जाना जा सकता है। भारत ही नहीं, पाश्चात्य देशों में भी पामिस्ट्रीका प्रचलन है।
ज्योतिष और हस्तरेखा-विज्ञान में मूलभूत अंतर यह है कि ज्योतिष में कुंडली के आधार पर व्यक्ति के बारे में बताया जाता है और दूसरे में हस्त रेखाओं के आधार पर। यह संभव नहीं है कि किन्हीं दो व्यक्तियों के हाथ की रेखाएं समान हों। ज्योतिष में समय के हेर-फेर से किसी व्यक्ति की कुंडली गलत भी बन सकती है, लेकिन हाथ की रेखाएं तो सामने होती हैं। इसलिए आकलन गलत होने का प्रश्न ही नहीं उठता। कर्म से तय होती है भाग्य रेखा पश्चिमी ज्योतिषी कीरो ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया है। फ्रांस के सेंट फ्रांसिसका भी इस क्षेत्र में अमूल्य योगदान है। उन्होंने हाथों के चित्रों के सहारे भविष्य बताने की इस कला को पूरी तरह समझाया है।
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, प्रमुख रेखाएं हैं- जीवनरेखा,मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा और भाग्य रेखा। छोटी रेखाओं में आती हैं विद्या रेखा, विवाह या प्रणय रेखा, संतान रेखा, यात्रा रेखा, चिंता रेखा आदि।
हस्तरेखाविद दाहिनी और बाईदोनों हथेलियों को देखते हैं। बाईहथेली यह स्पष्ट करती है कि हम अपने भाग्य में क्या लेकर आए हैं और दाई से यह पता चलता है कि अपने कर्मो से हमने अब तक क्या कुछ प्राप्त किया है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि महत्व केवल रेखाओं का नहीं, व्यक्ति के कर्म का भी है। यदि वह अकर्मण्य है, तो जो कुछ उसके हाथ में लिखा है, वह उसे पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर सकता। यदि वह कर्मठ है, तो हाथ में जितना कुछ नहीं लिखा है, उससे भी अधिक प्राप्त कर सकता है। इस संबंध में एक पाश्चात्य चिंतक का उद्धरण उपयोगी है-यदि हम ईश्वर को साथ लेकर अपने कर्म के प्रति पूर्ण मनोयोग से समर्पित हो जाएं, तो हम अपने भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकते हैं। निश्चित ही कर्म के आधार पर हाथ की रेखाएं बनती और बिगडती हैं। यदि किसी के हाथ में विद्या रेखा नहीं है और वह कठोर कर्म के आधार पर विद्या प्राप्त कर लेता है, तो विद्या रेखा उसके दाहिने हाथ में उग आएगी। फल का निर्धारण हस्तरेखा-विज्ञान को लेकर कई महत्त्‍‌वपूर्ण बातें उल्लेखनीय हैं। किसी भी रेखा का स्वरूप उसके फल को निर्धारित करता है। यदि किसी रेखा पर क्रॉसका चिह्न है या वह कहीं पर कटी हुई है या उस पर कहीं टापू [आइलैंड] बना हुआ है, तो यह सब उस रेखा के विरुद्ध जाते हैं। उदाहरण के लिए जीवन रेखा पर यदि ऐसा कोई चिह्न होगा, तो वह घोर बीमारी का सूचक होगा। यदि जीवन रेखा और मस्तिष्करेखाअपने उद्गम स्थान पर एक साथ नहीं मिलती हैं, तो वह व्यक्ति क्रांतिकारी स्वभाव का होता है। ऐसे लोग ही समाज के बंधनों को तोडकर कुछ भी कर लेते हैं। यदि हाथों की उंगलियों के बीच अंतर [फांक] है, तो ऐसा व्यक्ति फिजूलखर्च होता है।
यदि हथेलियां गहरी हों, तो व्यक्ति धनी होता है। किसी व्यक्ति की भाग्य-रेखा चंद्रस्थान[हथेली के नीचे बाईंतरफ] से निकलती है, तो वह निश्चित ही लेखक, कवि, संगीतकार या अन्य किसी कला में पारंगत होता है। यदि किसी व्यक्ति का अंगूठा हथेली के साथ नब्बे या उससे अधिक डिग्री का कोण बनाता है, तो वह व्यक्ति अपना निर्णय स्वयं लेता है और किसी के परामर्श पर नहीं जाता है। इसके विपरीत जिसका अंगूठा झुका रहता है, वह अपना निर्णय कभी भी स्वयं नहीं ले सकता है।
यदि किसी व्यक्ति के अंगूठेमें तीन के बदले चार चिह्न होते हैं, तो उसे बाहरी संपत्ति प्राप्त होती है। जिसके अंगूठेका ऊपरी भाग बडा होता है, वह निश्चित ही महत्वाकांक्षी होता है। तिल का महत्व काले तिल का महत्व हस्तविज्ञानमें बहुत है। यदि यह किसी ग्रह के स्थान पर है, तो शुभ है। यदि किसी रेखा पर है, तो उसे बर्बाद कर देता है। इस सम्बंध में मैं एक निजी अनुभव प्रस्तुत करता हूं। हस्तरेखा शास्त्री होने के नाते मुझे एक बार ग्यारह वर्ष के एक बालक का हाथ देखने का अवसर मिला, जो पागल था। मैंने उसकी मस्तिष्क रेखा को अच्छी तरह देखा। न तो उस पर क्रॉसथा, न आइलैंड,न वह टूटी थी, न कहीं से टेढी। पागल होने का एक और कारण होता है वह है मस्तिष्क रेखा का चंद्रमा के स्थान की ओर मुडना। ऐसा भी नहीं था।
मैंने सोचा कि हस्तरेखा सीखने का मेरा अब तक का सारा परिश्रम व्यर्थ गया। एक साक्षात पागल मेरे सामने खडा था, लेकिन पागलपन का कोई चिह्न उसके हाथ में नहीं था। तभी मेरा ध्यान उसके एक तिल पर गया, जो उसकी मस्तिष्क रेखा के मध्य में था और ठीक उसी के सामने जीवन रेखा पर भी। निश्चित था कि इन दो तिलों के कारण वह आजीवन पागल रहेगा। इस तरह हाथ की रेखाएं कुंडलियों या अंक विज्ञान से अधिक कारगर होती हैं और यदि उन्हें सही पढने वाला हो, तो एक खुली पुस्तक की तरह मनुष्य के जीवन की घटनाओं को पढ सकता है।
-[डा. भगवतीशरण मिश्र]
 
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